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रविवार, 13 सितंबर 2020

४८०. फ़ोटो

Photographer, Camera, Lens, Photo

मुझे रहने ही दो 

फ़ोटो से बाहर,

मुझे शामिल करोगे,

तो दिक्कत होगी तुम्हें.


मैं साफ़ कपड़े पहन लूँगा,

बाल बनवा लूँगा,

दाढ़ी-मूंछ कटवा लूँगा,

इत्र भी छिड़क लूँगा,

भले ही वह फ़ोटो में न आए,

पर क्लिक करते वक़्त 

जब तुम कहोगे 

कि मुस्कराओ,

तो मैं मुस्करा नहीं पाऊंगा.


मुझे नहीं आती

अन्दर से दुखी होकर 

बाहर से मुस्कराने की कला 

और तुम नहीं चाहोगे 

कोई ऐसा फ़ोटो खींचना,

जो सच बयाँ करे.

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया बात कही अपने कविता के माध्यम से। बाकि सब तस्वीरों में इतिहास..

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  2. बहुत सुन्दर।
    हिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।

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  3. वाह , सच यही है , हर ओर मुखोटे हैं !

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  4. कितनी सुंदर, सटीक रचना। वाह!

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  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-9 -2020 ) को "हिंदी बोलने पर शर्म नहीं, गर्व कीजिए" (चर्चा अंक 3825) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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  6. मुझे नहीं आती

    अन्दर से दुखी होकर

    बाहर से मुस्कराने की कला

    और तुम नहीं चाहोगे

    कोई ऐसा फ़ोटो खींचना,

    जो सच बयाँ क,,,,, बहुत भावपूर्ण और सच को वंया करती रचना ।

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  7. वाह!!
    बहुत सुंदर सटीक मर्म छूती रचना।

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