बादलों,
मैं चाँद को देख रहा था
और चाँद मुझे,
तुम क्यों आ गए बीच में ?
इतनी बड़ी दुनिया में
कहीं भी चले जाते,
बस चाँद-भर आकाश छोड़ देते,
बाक़ी सब तुम्हारा था.
***
बादलों,
चाँद को छिपाकर
इतना मत इतराओ,
मैं देख सकता हूँ उसे
आँखें बंद करके,
तुम्हारे होते हुए भी.
***
बादलों,
मैं कब से इंतज़ार में था
कि चाँद निकले,
वह निकला भी,
पर तुमने उसे छिपा लिया,
बिना उससे पूछे
कि वह छिपना चाहता था क्या?
अब हट भी जाओ रास्ते से,
तुम्हें नहीं पता,
पर मैं जानता हूँ
कि चाँद बहुत उदास होगा.
बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन।बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत मोहक रचना।
जवाब देंहटाएंगहन भाव लिए उत्कृष्ट सृजन
जवाब देंहटाएंचाँद से अच्छी खासी चैट हो गयी... और बातों-बातों में कविता हो गयी एकदम आसान और सरल भाषा में... हाँ बातें हुईं बड़ी गहरीवाली... बधाई भाई जी...
जवाब देंहटाएं" इतनी बड़ी दुनिया में
जवाब देंहटाएंकहीं भी चले जाते,
बस चाँद-भर आकाश छोड़ देते,
बाक़ी सब तुम्हारा था."- सारगर्भित रचना/विचार ...
वाह ! चाँद और बादलों से अच्छी सी गुफ्तगू ! सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर मनभावन सृजन
लाजवाब।
वाह बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंतुमने पूछा उससे
कि वह छिपना चाहता था क्या?
अब हट भी जाओ रास्ते से,
हो सकता है,चाँद उदास हो।
सुंदर प्रस्तुति।
प्रकृति के रात्रिकालीन परिवेश को अनुभूत कराती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना
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