कल शाम तेज़ तूफ़ान आया,
भटकता रहा गलियों में,
चिल्लाता रहा ज़ोर-ज़ोर से,
पेड़ों को झकझोरता रहा
काग़ज़ के टुकड़े उड़ाता रहा,
पीटता रहा दरवाज़े-खिड़कियाँ.
कोई नहीं मिला उसे,
न सड़कों पर,न गलियों में,
किसी ने नहीं खोला दरवाज़ा.
कल शाम तूफ़ान
मिलना चाहता था किसी से,
मुलाक़ात नहीं हुई,
तो फूट-फूट रोया,
सबने कहा,
तेज़ बरसात हो रही है.
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 30 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ओंकार जी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !! लाजवाब सृजन.
जवाब देंहटाएंतूफ़ान भी अकेला हो गया, कोई बतियाना नहीं चाहता. उसने ही रोया होगा, तो बारिश हुई.
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंमिलना चाहता था किसी से,
जवाब देंहटाएंमुलाक़ात नहीं हुई,
तो फूट-फूट रोया,
सबने कहा,
,,,,
तेज़ बरसात हो रही है.,,,,,,बहुत भावपूर्ण रचना बहुत शानदार ।
वाह !! बहुत ही सुंदर,इस अलग से सोच को सादर नमन
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