मेरे गाँव की औरतें
जमा होती हैं रोज़
सुबह-शाम पनघट पर.
घर से लेकर आती हैं
मटका-भर उदासी,
वापस ले जाती हैं
थोड़ा-सा पानी
और ढेर सारी ख़ुशी.
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 10 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह
Beautiful
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नमस्ते, आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 11 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
लाज़वाब!!! आपने कविता को एक ताजी हवा दी है। बधाई!!!
और उस जरा सी खुशी का कोई मुकाबला नहीं हो सकता। सादर
Vaah 🙏🙏
घर की बोरियत भरी उदासी मटका भर लाती हैं पनघट पर सखियों संग खिलखिलाती हैं और खुशियों से भर जाती हैंबहुत लाजवाब...वाह!!!
बेहतरीन कविता । आभार ।
अच्छी रचना ।
ताजगी के एहसास ले जाती हिं पानी के साथ ...बहुत खूब ...
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 10 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंBeautiful
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जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 11 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
लाज़वाब!!! आपने कविता को एक ताजी हवा दी है। बधाई!!!
जवाब देंहटाएंऔर उस जरा सी खुशी का कोई मुकाबला नहीं हो सकता।
जवाब देंहटाएंसादर
Vaah 🙏🙏
जवाब देंहटाएंघर की बोरियत भरी उदासी मटका भर लाती हैं पनघट पर सखियों संग खिलखिलाती हैं और खुशियों से भर जाती हैं
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब...
वाह!!!
बेहतरीन कविता । आभार ।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ।
हटाएंताजगी के एहसास ले जाती हिं पानी के साथ ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...