इस बार जब
खेत में बोओ
धान या गेहूँ,
तो मुझे बता देना .
मैं भी बो दूंगा
आस-पास वहीं
कविताओं के बीज,
डाल दूंगा थोड़ी
कल्पनाओं की खाद,
भावनाओं का पानी.
उन्हीं बीजों से निकलेंगी
खेतों की कविताएँ,
जिनमें महकेगी मिट्टी,
झूमेंगी बालियाँ,
जिनको खोलो,
तो दिखेंगे
धान और गेंहूं के दाने.
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार(14-08-2020) को "ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो" (चर्चा अंक-3793) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और भावप्रवण रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... कविताओं के बीज भी उगायेंगे धान और गेहूं ...
जवाब देंहटाएंउत्तम ...
शानदार रचना । मेरे ब्लॉग पर आप का स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर,काश ऐसी कोई तकनीक होती तो प्रेम के बीज भी बो दिए जाते,सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावना प्रस्तुत की है
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