कैक्टस जैसी होती हैं औरतें,
तपते रेगिस्तान में
बिना पानी, बिना खाद के
जीवित रहती हैं.
उनके नसीब में नहीं होते
फूल,पत्ते,कलियाँ,
ठूंठ की तरह उम्र भर
जीना पड़ता है उन्हें.
काँटों-भरी होती हैं औरतें,
उनके कांटे हरदम
उन्हीं को चुभते रहते हैं.
वाह
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 28 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी नमस्ते ,आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२९-०८-२०२०) को 'कैक्टस जैसी होती हैं औरतें' (चर्चा अंक-३८०८) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है--अनीता सैनी
सार्थक और सुन्दर।
सुन्दर कृति - - नमन सह।
वाह!! निशब्द करता लाजवाब सृजन ।
सुन्दर रचना
कांटे की तरह चुभ गई बात बात-बात पर आएगी याद
उनके कांटे हरदम उन्हीं को चुभते रहते हैं.वाह!!!बहुत ही सुन्दर गहन चिन्तनपरक सृजन
सर चढ़के बोलती है रचना :कैक्टस जैसी होती हैं औरतें,तपते रेगिस्तान में बिना खाद-पानी के जीवित रहती हैं.ओंकार जी वाह !blogpaksh.blogspot.com
वाह
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 28 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२९-०८-२०२०) को 'कैक्टस जैसी होती हैं औरतें' (चर्चा अंक-३८०८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
सार्थक और सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कृति - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंवाह!! निशब्द करता लाजवाब सृजन ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंकांटे की तरह चुभ गई बात
जवाब देंहटाएंबात-बात पर आएगी याद
उनके कांटे हरदम
जवाब देंहटाएंउन्हीं को चुभते रहते हैं.
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर गहन चिन्तनपरक सृजन
सर चढ़के बोलती है रचना :कैक्टस जैसी होती हैं औरतें,
जवाब देंहटाएंतपते रेगिस्तान में
बिना खाद-पानी के
जीवित रहती हैं.ओंकार जी वाह !blogpaksh.blogspot.com