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शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

४७२.गठरी

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वह गठरी,

जो कोनेवाले कमरे में पड़ी है,

आज ख़ुश है,

थोड़ी हिलडुल रही है.


गठरी को उम्मीद है 

कि बरसों बाद फिरेंगे 

उसके भी दिन,

आएगा कोई-न-कोई,

पूछेगा उसका हालचाल.


गठरी ने सुना है,

आज सब घर में हैं,

घर में ही रहेंगे,

अगले कई दिनों तक.


गठरी सोचती है,

वह खुलेगी नहीं,

कुछ बोलेगी नहीं,

बस चुपचाप सुनेगी,

गंवाएगी  नहीं  ऐसे पल,

जो बड़ी मुश्किल से मिलते हैं.

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 22 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. लाजवाब सृजन सर! गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं🙏🙏

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  3. सूने घर के सूनेपन से उचट चुकी गठरी
    अब जब सब हैं तो सबको सुनकर सुनापन हटायेगी
    बहुत सुन्दर...।

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  4. गठरी को उम्मीद है
    कि बरसों बाद फिरेंगे
    उसके भी दिन,
    आएगा कोई-न-कोई,
    पूछेगा उसका हालचाल.

    यहां उम्मीद उस सुखद भविष्य का प्रतीक है जिसे हम सभी चाहते हैं। बहुत दमदार कविता 👌👌👌
    मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 💐

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  5. गठरी में समेटने भी तो हैं ऐसे ही पल ... बहुत खूब ...

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