अक्सर मैं सोचता हूँ
कि मेरे दफ़्तर जाने के बाद
घर की दीवारें
मेरे बारे में क्या सोचती होंगी.
मेरी आलोचना करती होंगी
या तारीफ़?
मेरे साथ उदास रहती होंगी
या ख़ुश?
मुझे अच्छा समझती होंगी
या बुरा?
मैं सालों से यहीं रहता हूँ,
पर दीवारों ने मुझे
कभी कुछ नहीं कहा,
न ही मैंने कभी पूछा.
कभी-कभार मैं
जल्दी घर आ जाता हूँ,
पर न जाने कैसे
दीवारों को पता चल जाता है
और वे हमेशा की तरह
ख़ामोश हो जाती हैं.
दीवारें खामोशी से भी कुछ बातें कहती रहती हैं।
जवाब देंहटाएंसादर
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंकविता में घर की दीवारों के मनोभावों को भी महसूस करने की आपकी कोशिश एक मौलिक प्रयोग है। बेहतरीन कविता । हार्दिक बधाई । स्वतंत्रता दिवस की बहुत -बहुत शुभकामनाएं ।
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जवाब देंहटाएंअक्सर मैं सोचता हूँ
कि मेरे दफ़्तर जाने के बाद
घर की दीवारें
मेरे बारे में क्या सोचती होंगी.,,,,,,दीवारें बहुत कुछ कहती हैं बहुत सुंदर रचना ।
वाह एक न्यारी सी सोच ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
जय हिन्द।
वाह!बहुत खूब ओंकार जी ।
जवाब देंहटाएंAll consciousness is one inert or in -animate ,the same divine energy pervades great dialogue with the four walls of the house , a very subtle metaphor sir ,thanks for yr comments on kabirakhadabazarmein about my trivial report on the so called craze of our times omnipresent sanitizers
जवाब देंहटाएंveerujan.blogspot.com
veeruji05.blogspot.com
पौरबत्य चिंतन दर्शन अध्यात्म की यह मुख्य धारा है : जो जड़ में है वही चेतन में है -एक तत्व की ही प्रधानता कहो इसे जड़ या चेतन। मार्फ़त दीवार संवाद दीवारों के जो अंदर हैं उनसे है। रूपक का बेहतरीन इस्तेमाल ज़नाब ओंकारजी ने किया है। बधाई नारयण !
जवाब देंहटाएंveeruvageesh.blogspot.com
vageeshnand.blogspot.com
बड़ी शर्मीली होती हैं ये..
जवाब देंहटाएंबस खामोशी में ही बात करती हैं !
अति सुन्दर सृजन सर!