'रागदिल्ली' वेबसाइट पर प्रकाशित मेरी कविता:
मैं सरहद के इस ओर से देखता हूँ
उस ओर की हरियाली,
कंटीली तारें नहीं रोक पातीं
मेरी लालची नज़रों को.
सतर्क खड़े हैं बाँके जवान
इस ओर भी, उस ओर भी,
पर वे चुप हैं,
उनकी संगीनें भी चुप हैं.
पूरी कविता पढ़ने के लिए लिंक खोलें. https://www.raagdelhi.com/poetry-onkar-3/
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 09 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंwaah Bahut khoob aadarniiy
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-08-2020) को "भाँति-भाँति के रंग" (चर्चा अंक-3788) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बेहतरीन अभिव्यक्ति सर ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंलाजवाब भावाभिव्यक्ति सर .
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,बेहतरीन अभिव्यक्ति,सादर नमन
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंसही कहा सरहद के आर या पार आबोहवा भी समान है और हरियाली भी...बस वैमनस्यता ने सरहद की लकीरें बाँट दी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंगहन दृष्टि ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।