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शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

४६७. सरहद के उस ओर

 'रागदिल्ली' वेबसाइट पर प्रकाशित मेरी कविता:


मैं सरहद के इस ओर से देखता हूँ

उस ओर की हरियाली,

कंटीली तारें नहीं रोक पातीं

मेरी लालची नज़रों को.

सतर्क खड़े हैं बाँके जवान

इस ओर भी, उस ओर भी,

पर वे चुप हैं,

उनकी संगीनें भी चुप हैं.


पूरी कविता पढ़ने के लिए लिंक खोलें. https://www.raagdelhi.com/poetry-onkar-3/

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 09 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-08-2020) को     "भाँति-भाँति के रंग"  (चर्चा अंक-3788)     पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  3. बेहतरीन अभिव्यक्ति सर ,सादर नमन

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  4. लाजवाब भावाभिव्यक्ति सर .

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  5. बहुत खूब,बेहतरीन अभिव्यक्ति,सादर नमन

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  6. सही कहा सरहद के आर या पार आबोहवा भी समान है और हरियाली भी...बस वैमनस्यता ने सरहद की लकीरें बाँट दी।

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