मुझे अच्छा लगता है अपना नाम,
जब पुकारता है कोई धीरे से
अक्षर-अक्षर में भरकर
ढेर-सारा प्यार.
भीगी हवाओं की तरह
मेरे कानों तक पहुँचता है मेरा नाम,
ख़ुशी से भर देता है मेरा पोर-पोर.
मैं कोई जवाब नहीं देता,
बस कान खुले रखता हूँ,
चाहता हूँ कि पुकारनेवाला
पुकारता ही रहे मेरा नाम,
जवाब दे दूंगा,तो कैसे सुनूँगा
बार-बार लगातार
उसके मुँह से अपना नाम?
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 25 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... सच है पुकार लिए तो बात शुरू ... नाम गुम ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंवाह लाजवाब,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
बहुत बढ़िया सर!
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