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मंगलवार, 22 सितंबर 2020

४८४. गाँव का स्टेशन


गाँव का छोटा-सा स्टेशन

अच्छा लगता है मुझे,

दिन में एकाध गाड़ी रूकती है यहाँ,

थोड़े-से यात्री चढ़ते हैं यहाँ से,

थोड़े-से उतरते हैं यहाँ.


इसी स्टेशन की बेंच पर बैठकर 

मैंने बुने थे भविष्य के सपने,

बनाई थीं तमाम योजनाएं,

लिखी थीं दर्जनों कविताएँ,

इसी के कोने पर बैठकर 

मैंने पहली बार उसे देखा था.


गाँव का यह स्टेशन न होता,

यह बेंच न होती,

तो बहुत से रिश्ते 

शायद रह जाते बनने से.


क्या अब भी आप पूछेंगे 

कि गाँव का यह छोटा-सा स्टेशन 

मुझे इतना पसंद क्यों है?

7 टिप्‍पणियां:

  1. स्मृतियों के अमूल्य कोष पर बहुत सुन्दर सृजन ।

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  2. wah! Meri kismat mein gaanv ka chhota station nahi tha, par chhote chhote station mujhe bahut achhe lagte hain.

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  3. इसी के कोने पर बैठकर
    मैंने पहली बार उसे देखा था.
    गाँव का यह स्टेशन न होता,
    यह बेंच न होती,
    तो बहुत से रिश्ते
    शायद रह जाते बनने से.


    बहुत ख़ूबसूरत और नाजुक सा अहसास... इस प्यारी सी कविता के लिए साधुवाद ओंकार जी 🙏💐🙏

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