बगीचे में चुपचाप खड़ा
एक सेमल का पेड़
कितने रंग दिखाता है,
कभी हरे पत्ते,
कभी गहरे लाल फूल,
तो कभी सूखे पीले पत्ते.
कभी-कभी तो सेमल
बिल्कुल ठूंठ बन जाता है,
न पत्ते, न फूल,
उसकी एक-एक हड्डी
साफ़-साफ़ दिखाई पड़ती है.
जब लगता है
कि अब सेमल चुक गया,
दिन लद गए उसके,
वह लौटता है पूरी ताक़त से
और बिछा देता है ज़मीन पर
सफ़ेद,कोमल रूई का ग़लीचा.
बहुत सुंदर कविता!🌻स्कूल के दिनों की याद गई
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 19 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२०-०९-२०२०) को 'भावों के चंदन' (चर्चा अंक-३०३८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
वाह
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंलाजवाब.. बहुत सुन्दर सृजन .
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंअद्भुत सृजन
जवाब देंहटाएंसुंदर शोध सेमल पर ,सभी रंग दिखा दिए आपने अपनी छोटी कविता में।
जवाब देंहटाएंसुंदर सहज सृजन।
सुन्दर और सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंसेमल के कितने रूप समा गए छोटी सी रचना में। इंसान का जीवन भी तो ऐसा ही है !!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसेमल भी इंसान के जीवन सा ही है....।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर... सार्थक
लाजवाब सृजन।
motive story line
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