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गुरुवार, 12 मार्च 2020

४०९.परिवर्तन

Train, Wagon, Windows, Railway

रेलगाड़ी,अब वे दिन कहाँ?

लोग इंतज़ार करते थे, 
ख़ुश होते थे,
जब तुम सीटियाँ बजाती आती थी,
बाँध लेते थे बोरिया-बिस्तर
तुमसे मिलने को बेक़रार रहते थे.

अब तो मजबूरी में मिलते हैं,
उड़ने को आतुर,
कार में चलने के शौकीन,
तुम साफ़-सुथरी राजधानी 
या शताब्दी भी हो,तो क्या?

मायूस मत होओ, रेलगाड़ी,
बस चलती रहो,जब तक हो,
लोगों को पुकारती,
सबका स्वागत करती,
परिवर्तन ही दुनिया का नियम है.

5 टिप्‍पणियां:

  1. हम तो आज भी उत्साह से मिलते है इस रेलगाड़ी से

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  2. आपकी रचनाएँ जमीन से जुड़ी होती है जिन्हें पढ़ कर सुखद अहसास होता है ।

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  3. वाह क्या सुंदर लिखावट है सुंदर मैं अभी इस ब्लॉग को Bookmark कर रहा हूँ ,ताकि आगे भी आपकी कविता पढता रहूँ ,धन्यवाद आपका !!
    Appsguruji (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह) Navin Bhardwaj

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