बहुत से लोग खड़े थे
इंतज़ार में साहिल पर
कि मैं डूब जाऊँ,
तो वे बचाने आएँ.
**
मैं जब डूब रहा था,
कई गोताखोर थे साहिल पर,
पर तय नहीं कर पा रहे थे
कि मुझे कौन बचाएगा.
**
तैरना नहीं आता,
तो शांति से डूब जाओ,
जो साहिल पर खड़े हैं,
तुम्हें बचाने नहीं,
तमाशा देखने आए हैं.
**
लहर कहती है,
आओ,मेरे साथ चलो,
ये जो साहिल पर खड़े हैं,
ऐसे बहुतेरे देखे हैं मैंने.
***
साहिल की ओर देखोगे,
तो मायूसी हाथ लगेगी,
कोई बचाने नहीं आएगा,
चैन से मर भी नहीं पाओगे.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 03 अक्टूबर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (3-10-21) को "दो सितारे देश के"(चर्चा अंक-4206) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहकिकत को बयां करती बहुत उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब लिखा है इस को कोई कवि ही समझ सकता हैं
जवाब देंहटाएं