अब न रहे वे घर,
न वे रोशनदान,
जहाँ मैं तिनके जमा कर सकूँ,
अंडे दे सकूँ,
उन्हें से सकूँ,
जहाँ मेरे नन्हें चूज़े
आराम से रह सकें,
उड़ने लायक हो सकें.
हर जगह से निर्वासित हूँ मैं,
हर दरवाज़ा, हर खिड़की
अब बंद है मुझ पर,
अब मैं जी नहीं सकती,
अंत नज़दीक है मेरा.
पर तुम भी सुन लो
बिना गुलेलवाले बहेलियों,
हो सकता है कि
मेरी तरह कभी
तुम्हारी भी बारी आ जाय,
हो सकता है कि
एक दिन तुम्हारी भी गिनती हो
लुप्तप्राय प्राणियों में.
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंfree jankari
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