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शनिवार, 18 सितंबर 2021

६०२. कोयल और कौआ



उसकी मीठी बोली पर मत जाना,

बड़ी चालबाज़ है वह, 

उसके अंडे दूसरे ही सेते हैं,

वह ख़ुद डाल पर बैठकर 

कुहू-कुहू करती रहती है. 


कितना आसान होता है 

अपना काम किसी को सौंपकर 

ख़ुद मस्ती में गीत गाना !


मुझे तरस आता है कौए पर,

जो अपनी काँव-काँव से 

सबके कान फोड़ता है,

पर दूसरों के अंडे 

अपने मानकर सेता है.  


मीठा बोलना अच्छा है,

पर भ्रम में मत रहना,

बोली ही सब कुछ नहीं होती.


7 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२०-०९-२०२१) को
    'हिन्दी पखवाड़ा'(चर्चा अंक-४१९३)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. संसार की सच्चाई तो यही है। बिलकुल सटीक उदाहरण दिया है आपने।

    जवाब देंहटाएं
  3. इस रचना के जरिए बहुत ही उम्दा बात कही आपने! सच्चाई को बयां करती बहुत ही खूबसूरत रचना!

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  4. कोयल और कौवे के माध्यम से संदेश देती सुंदर कविता सर।
    सादर

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  5. मीठा बोलना अच्छा है,

    पर भ्रम में मत रहना,

    बोली ही सब कुछ नहीं होती.
    सही कहा मीठा मीठा कहकर लूटने वालों की कमी नहीं है आजकल।
    लाजवाब सृजन।

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