सूरज जो चमक रहा है शान से,
बस कुछ घंटों में डूब जाएगा.
नदी जो अभी उफान पर है,
सागर तक पहुँचकर खो जाएगी.
पानी जो बरस रहा है मूसलाधार,
थक-हार कर थम जाएगा.
रेत जो छू रही है आसमान,
हाँफकर ज़मीन पर गिर जाएगी.
रात जो डरा रही है सबको,
पौ फटते ही चली जाएगी.
अच्छा-बुरा जो भी है,
आज है,कल नहीं है,
अभी है,बाद में नहीं है.
इसलिए ज़्यादा दुःखी होना
उतना ही अर्थहीन है,
जितना ज़्यादा ख़ुश होना.
जीवन यही है सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर सार्थक संदर्भ को कहती रचना ।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (27-09-2021 ) को 'बेटी से आबाद हैं, सबके घर-परिवार' (चर्चा अंक 4200) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
ज़्यादा दुःखी होना
जवाब देंहटाएंउतना ही अर्थहीन है,
जितना ज़्यादा ख़ुश होना.
बहुत ही सकारात्मक बात कही है आपने । सदैव की.भांति अर्थपूर्ण सृजन ।
बहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर सार्थक सृजन।
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