दशहरे पर रावण उदास था,
समझ नहीं पा रहा था
कि उसे ही क्यों फूँका जा रहा है,
जबकि कई मौजूद हैं उस जैसे.
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राक्षस जो घूम रहे हैं खुले में
धूमधाम से मनाएँगे दशहरा,
ख़ुद को छिपाने के लिए
ज़रूरी है किसी और को फूँकना।
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अगर फूँकना ही है रावण को,
तो ठीक से फूँको,
यह क्या कि इस साल फूँका,
तो अगले साल फिर आ गया.
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थोड़ा-थोड़ा रावण सब में है,
जो पूरा रावण फूँकते हैं,
उन्हें नहीं चाहिए बख़्शना
अपने अंदर के रावण को.
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सोचा था, दशहरा मैदान में
बहुत से पुतले होंगे,
पर इस बार भी तीन ही थे,
हर बार की तरह इस बार भी
उन्हें ही फूँका गया.
बहुत सटीक और सार्थक सृजन।
जवाब देंहटाएंअगर फूँकना ही है रावण को,
तो ठीक से फूँको,
यह क्या कि इस साल फूँका,
तो अगले साल फिर आ गया.
सही कहा आपने।
एक बार फिर, दशहरे पर सटीक रचना!
जवाब देंहटाएंथोड़ा-थोड़ा रावण सब में है,
जवाब देंहटाएंजो पूरा रावण फूँकते हैं,
उन्हें नहीं चाहिए बख़्शना
अपने अंदर के रावण को.
बिल्कुल सही कहा आपने हर किसी को अपने अंदर के रावण को फूकने की जरूरत है !
बहुत ही सटीक सृजन!
सही कहा आपने, वैसे उस रावण से ज़्यादा ख़तरनाक रावण आज तो भरे पड़े हैं। सार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंNice Poem Sir. Biography
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