पिता,
मैं रोज़ देखता हूँ
सामनेवाली दीवार पर तुम्हें,
अच्छे लगते हो तुम
चुपचाप मुस्कुराते हुए.
सालों हो गए तुम्हें
यूँ ही मुस्कुराते हुए,
कभी तो गुस्सा दिखाओ,
कभी तो तस्वीर से निकलो,
कभी तो डाँटो-फटकारो.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 01 जुलाई 2021 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!!
सादर नमस्कार,आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (02-07-2021) को "गठजोड़" (चर्चा अंक- 4113 ) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद सहित।"मीना भारद्वाज"
आत्मविभोर कर गए आपके ये मर्मस्पर्शी शब्द।
वाह
बहुत बढ़िया
पिता की स्मृति में बहुत ही भावपूर्ण उद्गार ...लाजवाब।
बहुत सुंदर रचना।
बहुत खूब ...लम्हा बस रह ही जाता है ... समय आगे निकल जाता है ...
पिता,सालों हो गए तुम्हें यूँ ही मुस्कुराते हुए,कभी तो गुस्सा दिखाओ,कभी तो तस्वीर से निकलो,कभी तो डाँटो-फटकारो. हाँ,पिता के जाने के बाद उनके डांट-फटकार के लिए भी मन तरसता है। हृदयस्पर्शी...सादर नमन
बहुत सुंदर।सादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 01 जुलाई 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (02-07-2021) को "गठजोड़" (चर्चा अंक- 4113 ) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
आत्मविभोर कर गए आपके ये मर्मस्पर्शी शब्द।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंपिता की स्मृति में बहुत ही भावपूर्ण उद्गार ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब।
बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंलम्हा बस रह ही जाता है ... समय आगे निकल जाता है ...
पिता,
जवाब देंहटाएंसालों हो गए तुम्हें
यूँ ही मुस्कुराते हुए,
कभी तो गुस्सा दिखाओ,
कभी तो तस्वीर से निकलो,
कभी तो डाँटो-फटकारो.
हाँ,पिता के जाने के बाद उनके डांट-फटकार के लिए भी मन तरसता है। हृदयस्पर्शी...सादर नमन
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसादर