top hindi blogs

बुधवार, 2 जून 2021

५७४. सौ साल पहले की विधवा

 


मैं सौ साल पहले की 

वही विधवा बहू हूँ,

जो कोठरी में बंद रहती थी,

खाने के नाम पर जिसे 

सूखी रोटियाँ मिलती थीं

और दिन-भर के काम के बदले 

दुनिया-भर की झिड़कियाँ।


मैं सौ साल पहले की 

वही विधवा बहू हूँ,

जो सिर्फ़ इसलिए पिट जाती थी 

कि उसने किसी को देखकर 

थोड़ा-सा मुस्करा दिया था

या तेज़ हवा में सरक गया था 

उसका आँचल ज़रा-सा. 


मैंने फिर से जन्म लिया है 

ताकि बदला ले सकूँ उनसे,

पर जब खोजने निकलती हूँ,

तो कुछ पता ही नहीं चलता, 

हर क़दम पर मुझे 

ऐसे लोग मिलते हैं,

जिन्हें देखकर लगता है 

कि यही हैं वे,

जिन्होंने सैकड़ों साल पहले 

मुझे गर्म सलाख़ों से दागा था. 


4 टिप्‍पणियां:

  1. समय की आहट देरी से आती है पर आती ज़रूर है ... और समय ऐसी मान्यताओं को बदल देता है ...

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५ -०६-२०२१) को 'बादल !! तुम आते रहना'(चर्चा अंक-४०८७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!
    गज़ब!!
    हर आँख में नाखून है।
    बहुत सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं