आज न मैं मंत्री बना हूँ,
न विधायक,
न सांसद,
न ही मुझे मिला है
कोई और अहम पद.
न मैं रिटायर हुआ हूँ,
न मेरी शोकसभा है,
फिर क्यों हो रही है आज
मेरी इतनी तारीफ़?
हैरान हूँ मैं,
बिना बात के तो कभी
होती नहीं तारीफ़,
ऐसा क्या कर दिया मैंने
जिसकी ख़ुद मुझे ख़बर नहीं?
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (25-06-2021) को "पुरानी क़िताब के पन्नों-सी पीली पड़ी यादें" (चर्चा अंक- 4106 ) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
सही बात है तारीफ पानी है तो मंत्री विधायक या सांसद बनो। सब तारीफ के पुल बाँधेंगे... ये नहीं बन पा रहे तो मर जाओ हाँ सच में मरने वाले की भी होती है यहाँ तारीफ...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
मजेदार लाजवाब व्यंग रचना।
हैरान हूँ मैं,
जवाब देंहटाएंबिना बात के तो कभी
होती नहीं तारीफ़,
ऐसा क्या कर दिया मैंने
जिसकी ख़ुद मुझे ख़बर नहीं?
वाह अति सुंदर ।
सादर
वाह,सुंदर स्वीकारोक्ति।
जवाब देंहटाएंपंक्तियां कम हैं मगर बात पूरी कह गईं बल्कि शायद कुछ ज्यादा ही कि तारीफ कोई भी बेवजह नहीं करता...वाह ओंकार जी
जवाब देंहटाएंये अनुभव भी अच्छा ही है ...
जवाब देंहटाएंखुद से खुद की तारीफ़ ह तो भी ठीक ... अच्छी रचना है ...
सही कहा. आजकल का चलन यही है कि बिना काम के तारीफ़ नहीं होती... सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंतारीफ सुन कभी कभी ऐसा भी सोचना पड़ जाता है ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुदर कविता, कुछ लाइनों में ही जीवन भर का निचोड
जवाब देंहटाएंपॉंजिटव बातें positivebate.com