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सोमवार, 21 जून 2021

५८१. क़तार




आओ, दौड़कर आओ,

जल्दी से आकर 

क़तार में खड़े हो जाओ,

लम्बी क़तार है,

कुछ अच्छा ही बँट रहा होगा,

सोचने में समय मत गंवाओ,

बस शामिल हो जाओ.


जगह न मिले,

तो हटा दो किसी को,

धकेल दो, गिरा दो,

बना लो अपनी जगह,

मत सोचो कि 

सही क्या है,ग़लत क्या है.


तुम्हारा लक्ष्य बस एक ही है- 

क़तार में शामिल होना 

और ऐसी जगह खड़े होना 

कि जो कुछ भी बँट रहा है,

तुम उससे वंचित न रह जाओ.


15 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२३-0६-२०२१) को 'क़तार'(चर्चा अंक- ४१०४) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बहुत सच कहा आपने, बहुत सुंदर,शुभकामनाएँ ।

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  3. यथार्थ से परिपूर्ण सुन्दर सृजन ।

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  4. ऐसी ही मानसिकता दिखाई देती है ओंकार जी। कुछ बन गई है, कुछ नेताओं और आसपास के माहौल ने बना दी है। जो सच है उससे मुंह कैसे फेरें?

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  5. बहुत धारदार व्यंग्य रचना . यही देखा जाता है कि लोग लाइन तोड़कर जल्दी पा लेना चाहते हैं . इसी मानसिकता के चलते अव्यवस्थाएं फैली हैं . ट्रैफिक जाम भी इसी मानसिकता के कारण होता है .

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  6. बिलकुल सहीकहा आपने,सुंदर सृजन,सादर नमन

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