आओ, दौड़कर आओ,
जल्दी से आकर
क़तार में खड़े हो जाओ,
लम्बी क़तार है,
कुछ अच्छा ही बँट रहा होगा,
सोचने में समय मत गंवाओ,
बस शामिल हो जाओ.
जगह न मिले,
तो हटा दो किसी को,
धकेल दो, गिरा दो,
बना लो अपनी जगह,
मत सोचो कि
सही क्या है,ग़लत क्या है.
तुम्हारा लक्ष्य बस एक ही है-
क़तार में शामिल होना
और ऐसी जगह खड़े होना
कि जो कुछ भी बँट रहा है,
तुम उससे वंचित न रह जाओ.
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२३-0६-२०२१) को 'क़तार'(चर्चा अंक- ४१०४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सही।
जवाब देंहटाएंबहुत सच कहा आपने, बहुत सुंदर,शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंयथार्थ से परिपूर्ण सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंऐसी ही मानसिकता दिखाई देती है ओंकार जी। कुछ बन गई है, कुछ नेताओं और आसपास के माहौल ने बना दी है। जो सच है उससे मुंह कैसे फेरें?
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां सृजन
जवाब देंहटाएंयथार्थ
जवाब देंहटाएंयथार्थ
जवाब देंहटाएंयथार्थ
जवाब देंहटाएंबहुत धारदार व्यंग्य रचना . यही देखा जाता है कि लोग लाइन तोड़कर जल्दी पा लेना चाहते हैं . इसी मानसिकता के चलते अव्यवस्थाएं फैली हैं . ट्रैफिक जाम भी इसी मानसिकता के कारण होता है .
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआजकल यही तो हो रहा है
जवाब देंहटाएंबिलकुल सहीकहा आपने,सुंदर सृजन,सादर नमन
जवाब देंहटाएंसटीक कथन।
जवाब देंहटाएंबढ़िया कटाक्ष ।
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