गुलमोहर के पेड़ पर खिले
आख़िरी फूल,
तुम्हारी जिजीविषा को सलाम।
गिरते रहे एक-एक कर
तुम्हारे साथ खिले फूल,
पर तुम डटे रहे,
लड़ते रहे तूफ़ानों से,
भिड़ते रहे बारिशों से,
पर अब तुम्हें जाना होगा,
मिलना होगा मिट्टी में.
जिन पत्तों से तुम घिरे हो,
जिस डाल पर खिले हो,
जिस पेड़ से जुड़े हो,
सब होंगे एक दिन धराशाई,
कोई पहले,कोई बाद में.
यहाँ तक कि तुम्हारे पेड़ की जड़ें,
जो घुस गई हैं ज़मीन में गहरे तक,
एक दिन सूख जाएंगी,
अंत निश्चित है उनका भी.
जीवन सत्य को उजागर करता हृदयस्पर्शी सृजन ।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१२-०६-२०२१) को 'बारिश कितनी अच्छी यार..' (चर्चा अंक- ४०९३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
यही जीवन का सत्य है ! धरा पर आने वाला क्या करेगा, क्या बनेगा यह भले ही अनिश्चित हो पर एक दिन वह जाएगा यह सुनिश्चित होता है
जवाब देंहटाएंसत्य शाश्वत शुरुआत में सरल सी दिखती रचना आध्यात्म में समा गई ।
जवाब देंहटाएंअद्भुत।
बेहद हृदयस्पर्शी
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