मैं युद्ध के विरुद्ध हूँ.
जो युद्ध की वकालत करते हैं,
उन्हें मरने का ख़तरा नहीं होता,
वे चाहते हैं कि दूसरे लोग आगे आएँ
और सीने पर गोलियाँ खाएँ।
उनकी माँओं को डर नहीं होता
कि सूनी हो जाएंगी उनकी गोद,
उनके बच्चों को डर नहीं
कि वे यतीम हो जाएँगे,
उनकी पत्नियों की मांगों में
सलामत बना रहेगा सिन्दूर.
जो युद्ध की वकालत करते हैं,
वे तिरंगे का हवाला देते हैं,
वे जानते हैं कि उन्हें
कभी नहीं लौटना होगा
तिरंगे में लिपटकर.
मैं घृणा करता हूँ युद्ध से
और घृणा करता हूँ उनसे,
जिन्हें युद्ध में जाना नहीं पड़ता,
पर जो युद्ध की वकालत करते हैं.
बहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंयुद्ध कौन चाहता है लेकिन शान्ति भी युद्ध से ही आती है !
जवाब देंहटाएंयही एक मात्र सत्य है. जिनका कुछ खोता नहीं वे युद्ध को जायज़ ठहराते हैं. भले ही युद्ध कहीं भी हो, मरते हैं सैनिक. मुझे तो लगता है कि पूरी दुनिया के सैनिक एक साथ युद्ध के लिए मना कर दें. तभी पूरी दुनिया में शान्ति होगी.
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक रचना।
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