दूर कहीं से आ रही ट्रेन
स्टेशन के बाहर सिग्नल पर
अचानक ठहर गई है,
चलने का नाम नहीं ले रही.
मैं प्लेटफॉर्म पर हूँ, बेचैन हूँ,
अब और इंतज़ार नहीं होता,
जैसे किसी भूखे के पास थाली,
किसी प्यासे के पास पानी हो,
पर खाने-पीने की मनाही हो.
ट्रेन,इससे तो अच्छा था
कि तुम कहीं और रुक जाती,
मैं इंतज़ार कर लेता,
पर इतने पास आकर भी
तुम्हारा इतनी दूर रहना
अब मुझसे सहा नहीं जाता.
प्रतीक्षा धैर्य की परीक्षा ही लेती है..यथार्थ भाव लिए सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर,जीवन संदर्भ समझाती रचना।
जवाब देंहटाएं