इस शहर में कुछ नहीं बदला,
यहाँ सड़कें वही हैं,
मकान वही हैं,
बाज़ार वही हैं.
गाड़ियाँ वही हैं.
हाँ, थोड़ा सा फ़र्क़ है,
सड़कें वीरान हैं,
लोग घरों में बंद हैं,
वाहन चुपचाप खड़े हैं,
बाज़ार सूने हैं.
इस शहर में कुछ ख़ास नहीं बदला,
पर अब यह शहर शहर नहीं लगता,
बहुत ज़रूरी है शहर में शोर होना
शहर को शहर बनाने के लिए.
बेहद खूबसूरत सृजन
जवाब देंहटाएंसत्य कथन
जवाब देंहटाएंयथार्थ से परिपूर्ण सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत ज़रूरी है शहर में शोर होना
जवाब देंहटाएंशहर को शहर बनाने के लिए.
बहुत गहरी बात...कोलाहल ही तो पहचान है शहरों की।
उम्दा रचना 🌹🙏🌹
इस शहर में कुछ ख़ास नहीं बदला,
जवाब देंहटाएंपर अब यह शहर शहर नहीं लगता,
बहुत ज़रूरी है शहर में शोर होना
शहर को शहर बनाने के लिए. ---आज के दौर में सभी के मन की लिख दी है आपने। अच्छी रचना है।
बिलकुल सच। यह सन्नाटा तो मौत का सन्नाटा है। इसकी जगह ज़िंदगी का शोर चाहिए।
जवाब देंहटाएंसत्य एवं सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंसच्चाई को परभाषित करता बहुत ही सार्थक सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ बयां कर गई आपकी कविता, थोड़े शब्दो में काफी कुछ समझा गई हैं
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