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रविवार, 8 अगस्त 2021

५९५.नदी

 


मुझे समंदर से मिलना है,

मुझे तेज़-तेज़ बहने दो, 

मत रोको मेरी राह,

मत रोको मेरा प्रवाह. 


सुदूर पर्वतों से आई हूँ,

लंबा सफ़र तय करना है, 

अभी बहुत दूर बहना है,

लक्ष्य तक पहुंचना है. 


जो मैं चलती रही,

तो तुम्हारा भला ही करूंगी,

तुम्हारी प्यास बुझाऊँगी ,

तुम्हारे खेतों को सींचूँगी,

तुम्हारी भूख मिटाऊँगी. 


ओ मेरे तट पर रहने वालों,

थोड़ा तो क़ाबू रखो ख़ुद पर,

तुम्हारे आत्मघाती लालच की

कोई हद है या नहीं ?


कहीं ऐसा न हो जाय 

कि विकराल रूप दिखाना पड़े मुझे  ,

विध्वंस पर उतरना पड़े

या बिना मंज़िल तक पहुंचे 

बीच में ही मर जाना पड़े. 


मुझे बहने दो, 

मुझे जीने दो,

मेरा जीवित रहना 

तुम्हारे जीने के लिए ज़रूरी है.


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