गाँव की वह छोटी-सी लड़की
सुबह-शाम आँगन बुहारती है,
गाय-भैंसों को चारा देती है,
माँ की बनाई हुई रोटियाँ
खेत में बाप को पहुँचाती है.
गाँव की वह छोटी-सी लड़की
बिना नाग़ा स्कूल जाती है,
परीक्षा में अच्छे नंबर लाती है,
हर शाम छोटी बहन को
पाठ तैयार कराती है.
गाँव की वह छोटी-सी लड़की
घर के हर बीमार को
डॉक्टर तक ले जाती है,
दवा, मिट्टी का तेल,राशन-
ज़रूरत का हर सामान
दौड़कर दुकान से लाती है.
गाँव की वह छोटी-सी लड़की
बहुत उदास हो जाती है,
जब भी उसके माँ-बाप कहते हैं,
‘काश,हमारे यहाँ बेटा पैदा होता.’
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन के में" आज गुरुवार 26 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
अत्यंत मार्मिक रचना!
जवाब देंहटाएंसही बात हर बेटी के मन की...बेटों से भी बढ़कर करके भी जब ऐसा सुनती है बेटी तो अंदर से टूट जाती है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन।
हृदय स्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंकिसी भी समर्पित बेटी का ये दुर्भाग्य ही होता है ।
काश....!
मन के भाव बाखूबी लिखे हैं ... उदासी सबको है इस सोच पर ...
जवाब देंहटाएंbahut gehari baat kahi aur shabdon se waqai man ke bhavon ko khusbsurti se ubhara hai !
जवाब देंहटाएंabhar!