कड़कती ठण्ड में ठिठुरती-सी रात,
कोहरे में लिपटी सहमी-सी रात,
घनघोर बारिश में भीगी-सी रात,
भीषण गर्मी में दहकती-सी रात.
पत्थरों पर बिछी हुई चुभती-सी रात,
तीन बटा छः की संकरी-सी रात,
दर्द के मारे कराहती-सी रात,
खनकती आवाज़ों में सिसकती-सी रात.
कभी कहीं,कभी कहीं गुज़रती-सी रात,
गालियों-डंडों से बचती-सी रात,
टुकड़ों-टुकड़ों में बिखरती सी रात,
छोटे से दिन की लंबी सी रात.
अति सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
जवाब देंहटाएंआपने लिखा....
हमने पढ़ा......
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें.....
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.......
दिनांक 20/ 07/2021 को.....
पांच लिंकों का आनंद पर.....
लिंक की जा रही है......
आप भी इस चर्चा में......
सादर आमंतरित है.....
धन्यवाद।
ये रात कुछ अजीब है ......
जवाब देंहटाएंविचारणीय सृजन
बहुत ही सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंरात की खूबसूरती को बयां करती बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंVery Awesome Article 🙂! Keep sharing these type of articles with us it really help us to improve our knowledge power.
जवाब देंहटाएंRegards,
Kiara
वाह! बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंबेबसी और अभावों की रातें जिन्होंने काटी हों वही समझ सकते हैं।
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