माली,
तुमने अच्छा किया
कि सुन्दर बगिया बनाई,
ऐसे फूल खिलाए,
जिनकी महक खींच लाए
दूर से किसी को भी,
पर अब एक-से फूलों
और एक-सी ख़ुश्बू से
मेरा मन ऊब रहा है.
अब दूसरे पौधे लगाओ,
दूसरे फूल खिलाओ,
जिनमें ख़ुश्बू भले कम हो,
पर जो थोड़े अलग हों.
छोटी सी बात -- सरल अभिव्यक्ति बड़ा दर्शन | शुभकामनाएं ओंकार जी |
अत्यंत सुंदर सृजन सर
जी नमस्ते ,आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(२८-०७-२०२१) को 'उद्विग्नता'(चर्चा अंक- ४१३९) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है। सादर
सुन्दर सृजन ।
बहुत सुन्दर सृजन।
वाह छोटी सी आशा!!
बिल्कुल सही ! एकरसता ऊब पैदा कर ही देती है !
फूल तक तो ठीक है लेकिन हर जगह परिवर्तन नहीं हो सकता । भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
बदलाव तो हो लेकिन वह सार्थक हो !
बहुत सुंदर रचना...
...गहनतम रचना।
बहुत सुंदर रचना
सुंदर रचना
सुन्दर सारगर्भित,गूढ़ रचना।
कुछ अलग की जरूरत तो हर किसी को होती है ... जाने पहचाने को भी उबाऊ बना देती है ...
छोटी सी बात -- सरल अभिव्यक्ति बड़ा दर्शन | शुभकामनाएं ओंकार जी |
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुंदर सृजन सर
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(२८-०७-२०२१) को
'उद्विग्नता'(चर्चा अंक- ४१३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंवाह छोटी सी आशा!!
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही ! एकरसता ऊब पैदा कर ही देती है !
जवाब देंहटाएंफूल तक तो ठीक है लेकिन हर जगह परिवर्तन नहीं हो सकता ।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
बदलाव तो हो लेकिन वह सार्थक हो !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएं...गहनतम रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर सारगर्भित,गूढ़ रचना।
जवाब देंहटाएंकुछ अलग की जरूरत तो हर किसी को होती है ... जाने पहचाने को भी उबाऊ बना देती है ...
जवाब देंहटाएं