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शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

५८८.संकल्प


घूम-घूम कर आता है
वह ज़िद्दी मच्छर,
भिनभिनाता है
मेरे कानों के पास,
जैसे बजा रहा हो
खुले आम रणभेरी.





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