वह कौन है,
जो ज़ोर-ज़ोर से
अस्पताल के दरवाज़े पर
दस्तक दे रहा है?
उसे कहो,
यहाँ कोई बेड नहीं है,
कहीं कोई बेड नहीं है,
वह कितना ही क्यों न पीटे,
दरवाज़ा नहीं खुलेगा.
उसे कहो,
वापस घर जाए,
क्या उसे नहीं मालूम
कि कोरोना-काल में
जहाँ तक संभव हो,
घर में ही रहना बेहतर है?
सच में घर सबसे बेहतर। मौत भी आयेगी तो अपनों के सामने। भावपूर्ण रचना ओंकार जी। हार्दिक शुभकामनाएं,👌👌🙏🙏
जवाब देंहटाएंबेहद हृदयस्पर्शी सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत संवेदनशील रचना ....
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण कविता \सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंमार्मिक
जवाब देंहटाएंअभूतपूर्व संकट !
जवाब देंहटाएंअत्यंत मर्मस्पर्शी सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संवेदनशील
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह! अद्भुत। अद्वितीय। बेहतरीन व्यंग्य एवं सलाह भी।
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