तुम मुझसे दूर रहती हो,
जैसे मैं कोरोना होऊं,
पर मैं तुम्हारे अंदर हूँ.
तुम्हें पता नहीं है,
क्योंकि कोई सिम्प्टम नहीं है.
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मैं क़रीब आया हूँ,
तो हमेशा के लिए,
कोई कोरोना नहीं हूँ
कि कुछ दिन रहूँ,
फिर चला जाऊं.
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मैंने जान ली है
तुम्हारी नज़रों से
तुम्हारे मन की बात,
अगर छिपाना ही है,
तो नाक-मुँह ही नहीं,
आँखों पर भी लगा लो मास्क.
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मैं कोरोना नहीं हूँ
कि टीके से चला जाऊँ,
मुझे दूर करना है,
तो दिल से कहो
कि चले जाओ.
मैं कोरोना नहीं हूँ
जवाब देंहटाएंकि टीके से चला जाऊँ...
प्रेम की ख़ासियत यही है एक बार आया तो आजन्म रहता है
वाह।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 16 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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जवाब देंहटाएंमैं क़रीब आया हूँ,
तो हमेशा के लिए,
कोई कोरोना नहीं हूँ
कि कुछ दिन रहूँ,
फिर चला जाऊं. आज की सच्चाई बयां करती सुन्दर भावपूर्ण कृति,
मैंने जान ली है
जवाब देंहटाएंतुम्हारी आँखों से
तुम्हारे मन की बात,
अगर छिपाना ही है,
तो सिर्फ़ नाक तक नहीं,
पूरे चेहरे पर लगाओ मास्क.---वाह...बहुत खूब।
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंकोरोना के माध्यम से भी प्रेम कविता हो सकती है , ये आप ही कर सकते हैं । सुंदर क्षणिकाएँ ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर समसामयिक कविता.... वाह बहुत खूब लिखा ओंकार जी
जवाब देंहटाएंमैंने जान ली है
जवाब देंहटाएंतुम्हारी नज़रों से
तुम्हारे मन की बात,
अगर छिपाना ही है,
तो नाक-मुँह ही नहीं,
आँखों पर भी लगा लो मास्क
yathart sachai, har ek bandh apne aap mein swatantra paigam deta hai
सच में वो शै है जो छुड़ाते न छूटे।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
सादर।
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जवाब देंहटाएंकोरोना टीका लगने पर भी कहाँ साथ छोड़ रहा है
जवाब देंहटाएंवाह !!!!!
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