इस कठिन समय में
जब निराशा ने घेर लिया है
हमें चारों तरफ़ से,
बच गई है किसी कोने में
थोड़ी-सी उम्मीद,
जैसे बंद खिड़की में
रह गई हो कोई झिर्री,
जिससे घुस आई हो
प्रकाश की किरण कमरे में.
किरण इशारा कर रही है
कि सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ,
किरण पूछ रही है
कि असमय अँधेरा हो जाय,
तो खिड़कियाँ बंद कर लेना
कहाँ की अक़्लमंदी है?
वाह।
जवाब देंहटाएंSach hai!
जवाब देंहटाएंखिड़कियाँ बन्द कर लेना बुद्धमानी नहीं है।
जवाब देंहटाएंविपरीत परिस्थितियों में आशा की किरण दिखाती खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंसकारात्मक चिंतन लिए सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंनिराशा में आशा का बिम्ब बनती सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंवाह गहन रचना।
जवाब देंहटाएंआशापूर्ण सकारात्मक ऊर्जा देती हुई सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर ! सच है, सभी कुछ ख़त्म नहीं हुआ है ! सुबह का सिर्फ इन्तजार करना है ! वह जरूर आएगी
जवाब देंहटाएंलाजवाब चिंतन आशा और विश्वास से परिपूर्ण।
जवाब देंहटाएं