किनकी है, कहाँ से आई हैं?
किस गाँव,किस क़स्बे,किस शहर से,
क्यों आई हैं, पता तो करो.
ये बीमारों की लाशें हैं,
तो लावारिश-जैसी क्यों हैं?
अंतिम संस्कार तो होना था इनका,
कोई तो अपना रहा होगा इनका.
अपनों की कोई मजबूरी थी,
तो क्या थी, पता तो करो,
अंतिम संस्कार के लिए जगह कम थी
या छुटकारा चाहिए था किसी को?
ये बेजान लाशें सवाल कर रही हैं,
अब इन्हें जला दो या दफ़ना दो,
तो भी ये सवाल पूछना बंद नहीं करेंगी.
बिल्कुल,आखिर बहती लाशों का राज क्या है? पता चलना ही चाहिए
जवाब देंहटाएं।
मार्मिक रचना | आजकल इसी खबरें बहुत विचलित कर रही हैं | लाशें मौन रहकर भी सवाल तो करती ही रहेगी |
जवाब देंहटाएंये समय चीखता रहेगा, ये शव भी चीखते रहेंगे और ये दौर भी चीखता रहेगा...ये दर्द की पराकाष्ठा का दौर है...। गहरी रचना
जवाब देंहटाएंकौन देगा इन सवालों के जवाब? शायद मानव का भय, लोभ या कोई और विकार ही इस हृदयहीनता का कारण है
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी सृजन
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट सृजन।
जवाब देंहटाएंप्रश्न पूछे जाते रहेंगे । जो अनुत्तरित ही रहेंगे ।
जवाब देंहटाएंमार्मिक प्रस्तुति ।