ठीक करती हो तुम
कि दूर रहती हो मुझसे,
हो सकता है बच जाओ,
पर संभलकर रहना,
मैंने सुना है,
आजकल कोरोना हवाओं में है.
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तुम मुझसे दूर रहती हो,
पर मैं कोरोना नहीं हूँ,
यह संभव है
कि मैं तुम्हारे पास रहूँ,
फिर भी तुम स्वस्थ रहो .
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मैं दूसरी लहर का कोरोना हूँ,
पहली से ज़रा अलग हूँ,
दूर रहकर भी लग जाऊंगा,
तुम्हें पता भी नहीं चलेगा.
तुम मुझसे दूर रहती हो,
जवाब देंहटाएंपर मैं कोरोना नहीं हूँ,
यह संभव है
कि मैं तुम्हारे पास रहूँ,
फिर भी तुम स्वस्थ रहो . बहुत अच्छी रचना
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28 -5-21) को "शब्दों की पतवार थाम लहरों से लड़ता जाऊँगा" ( चर्चा - 4079) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
वाह! अद्भुत मनोभाव व्यक्त करती रचना।
जवाब देंहटाएंवाह ! दूर रहकर भी लग जाए और पता भी ना लगे। कोरोना ने रचनाकार को प्रेम के नए उपमान दे दिए हैं। सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंकोरोना पर गहन सोच । हर क्षणिका बहुत कुछ कहती हुई ।
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