मेरे कान सुन्न हो रहे हैं
मौत की ख़बरें सुन-सुनकर,
यह कैसा सिलसिला है,
जो थमने का नाम ही नहीं लेता?
धराशाई हो रहे हैं
नए-पुराने पेड़,
हर वक़्त सुनाई देती है
किसी के गिरने की आवाज़.
हाहाकार मचा है चारों ओर,
क्रंदन गूँजता है हवाओं में,
कराहता है कोई आस-पास,
भागती है सायरन बजाती एम्बुलेंस.
बंद करो ये आवाज़ें,
अगर ये जल्दी बंद नहीं हुईं,
तो मुझे डर है
कि मैं कहीं बहरा न हो जाऊँ।
डर का माहौल है..
जवाब देंहटाएंधराशाई हो रहे हैं
जवाब देंहटाएंनए-पुराने पेड़,
हर वक़्त सुनाई देती है
किसी के गिरने की आवाज़. ---बहुत गहरी रचना है...
मौत की दहशत का आंखों देखा हाल।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (20-05-2021 ) को 'लड़ते-लड़ते कभी न थकेगी दुनिया' (चर्चा अंक 4071) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
ऐसी परिस्थितियां देखकर सच में मन अभी बहुत विचलित और भावुक है। दिमाग परेशान और हैरान रहता है।
जवाब देंहटाएंआपने वर्तमान के सभी भावुक क्षण को समेट लिया है इस रचना के माध्यम से।
भयवाह स्थिति का चित्रण
जवाब देंहटाएंभयावह पपरिस्थितियों का सही चित्रण हुवा है।
जवाब देंहटाएंऐसे लगता है जिंदगी सस्ती और मौत महँगी हो गई आजकल
जवाब देंहटाएंसंवेनदशील और मर्मस्पर्शी सामयिक चिंतन प्रस्तुति
कोरोना की भयावहता का मार्मिक चित्रण ।
जवाब देंहटाएंमार्मिक कविता
जवाब देंहटाएंअच्छा चित्रण