मुस्कराएगा थोड़ी देर में आसमान,
खिल उठेगी उसे देखकर धरती,
सूख जाएंगे घास पर चमकते आँसू.
एक दूजे से दूर हैं धरती और आकाश,
मिल नहीं सकते आपस में कभी भी,
फिर भी कोई-न-कोई डोर तो है,
जो बांधे हुए है एक को दूसरे से .
बेहतरीन।
बहुत गहरे, अंतर्मन को छूती सुन्दर अनुभूति..
बहुत बढ़िया सर!
मुस्कराएगा थोड़ी देर में आसमान,खिल उठेगी उसे देखकर धरती,सूख जाएंगे घास पर चमकते आँसू.हृदयस्पर्शी सृजन ।
जी नमस्ते ,आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (०४-०२-२०२१) को 'जन्मदिन पर' (चर्चा अंक-३९६७) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है। --अनीता सैनी
वाह!सुंदर रचना माननीय। सादर।
बहुत सुंदर मनोरम रचना...🌹🙏🌹
बहुत ही सुंदर सृजन।
एक दूजे से दूर हैं धरती और आकाश,मिल नहीं सकते आपस में कभी भी,फिर भी कोई तो ऐसी डोर है,जो बांधे है एक को दूसरे से . सत्य है,लाजबाब सृजन ,सादर नमन आपको
बहुत सुन्दर काव्य रस।
बहुत सुंदर ! फासला कितना भी हो अपनों के सुख-दुःख का एहसास सदा बना रहता है
मन में गहरे तक उतरती भावपूर्ण रचनाबहुत सुंदरबधाई
बहुत बहुत सुन्दर
बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे, अंतर्मन को छूती सुन्दर अनुभूति..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंमुस्कराएगा थोड़ी देर में आसमान,
जवाब देंहटाएंखिल उठेगी उसे देखकर धरती,
सूख जाएंगे घास पर चमकते आँसू.
हृदयस्पर्शी सृजन ।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (०४-०२-२०२१) को 'जन्मदिन पर' (चर्चा अंक-३९६७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
वाह!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना माननीय। सादर।
बहुत सुंदर मनोरम रचना...🌹🙏🌹
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंएक दूजे से दूर हैं धरती और आकाश,
जवाब देंहटाएंमिल नहीं सकते आपस में कभी भी,
फिर भी कोई तो ऐसी डोर है,
जो बांधे है एक को दूसरे से .
सत्य है,लाजबाब सृजन ,सादर नमन आपको
बहुत सुन्दर काव्य रस।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ! फासला कितना भी हो अपनों के सुख-दुःख का एहसास सदा बना रहता है
जवाब देंहटाएंमन में गहरे तक उतरती भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बधाई
बहुत बहुत सुन्दर
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