ज़िन्दगी भर मैं हिन्दू बना रहा,
पर ज़रूरी नहीं कि मृत्यु के बाद
मेरा शरीर भी सिर्फ़ हिन्दू बना रहे.
मेरी मौत के बाद
मेरा शरीर थोड़ा जला देना,
थोड़ा दफना देना,
थोड़ा चील-कौवों को खिला देना.
मैं चाहता हूँ
कि मौत के बाद
मैं सिर्फ़ हिन्दू न रहूँ,
मुस्लिम, ईसाई, पारसी
जैन और सिख भी बन जाऊं.
जो काम मैं ख़ुद न कर सका,
अपने बेजान शरीर से कराना चाहता हूँ.
ये बात भी एक हिन्दू ही सोच सकता है ।।गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 22 फरवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंगज़ब अभिव्यक्ति ...!!
जवाब देंहटाएंगहन और हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंवाह!!क्या बात है ,बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंविचारों की गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंक्या बात है !!
जवाब देंहटाएंआपको हिंदू बने रहने की कोई बाध्यता नहीं है. तत्काल हिंदू धर्म छोड़ दीजिए.
जवाब देंहटाएंभाव पूर्ण अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक कविता...
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं 🙏
संगीता जी की बात बहुत खूब रही, आपकी रचना भी कमाल की सोच लिए हुए है ,वाकई भारत धर्म निर्पेक्ष देश है , जहाँ इंसान के विचार इतने ऊँचे है कि वो चाहे जिस धर्म से जुड़ा हुआ हों,लेकिन उसके मन में सम्मान सभी धर्म के लिए समान रूप से है , मन खुश हो गया आपकी रचना को पढ़कर , मेरी भी यही धारणा है ,धर्म तो जन्म से जुड़े हुए हैं , मगर इस दुनिया में हम इंसान पहले है , क्या बात है , इस रचना की जितनी तारीफ की जाये कम है, क्योंकि इस तरह के विचारों वाले लोग बहुत ही कम होते है ।आपका हार्दिक आभार सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंअद्भुत।
ऐसी सोच एक रचनाकार ही रख सकता है।
जवाब देंहटाएंसादर नमन।
मेरे मन की बात कही है आपने ओंकार जी । ऐसी सोच रामकृष्ण परमहंस जी की थी । बहुत अच्छा लगा पढ़कर ।
जवाब देंहटाएंजोकाम मैं ख़ुद न कर सका,
जवाब देंहटाएंअपने बेजान शरीर से कराना चाहता हूँ.!!!
निशब्द!!!!