मेरे गाँव में सुबह-सुबह
बैलगाड़ियाँ आती थीं,
भरी होती थीं उनमें
खेतों की ताज़ी सब्जियाँ,
सामने बैठे रहते थे
बैलों को हाँकते किसान.
उनके पीछे-पीछे आता था
उनींदा-सा सूरज,
जिधर से बैलगाड़ियाँ आती थीं,
मेरे गाँव में सूरज
उधर से ही उगता था.
शाम को बैलगाड़ियाँ
वापस लौट जाती थीं,
सूरज भी चल पड़ता था
आराम करने दूसरी ओर .
आजकल मेरे गाँव में
कोई बैलगाड़ी नहीं आती,
आजकल मेरे गाँव में सूरज
पूरब में उगता है
और पश्चिम में डूबता है.
पुराने दिनों को याद दिलाती अनोखी रचना..
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना।
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जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 19-02-2021) को
"कुनकुनी सी धूप ने भी बात अब मन की कही है।" (चर्चा अंक- 3982) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
शानदार रचना के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी लगी आपकी रचना, गाँव मुझे भी पसंद है, लेकिन अब ये दृश्य देखने को नही मिलते नमन
जवाब देंहटाएंअद्भुत रोमांचक!
जवाब देंहटाएंसत्य सटीक।
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआजकल मेरे गाँव में
जवाब देंहटाएंकोई बैलगाड़ी नहीं आती,
आजकल मेरे गाँव में सूरज
पूरब में उगता है
और पश्चिम में डूबता है.
आज के हालात को बखूबी चित्रित करती श्रेष्ठ रचना...🌹🙏🌹
गाँव और बैलगाड़ी की याद दिलाती बहुत ही सुंदर रचना ओंकार जी,सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंकितनी सुंदर रचना है ये!
जवाब देंहटाएंआजकल मेरे गाँव में
जवाब देंहटाएंकोई बैलगाड़ी नहीं आती,
आजकल मेरे गाँव में सूरज
पूरब में उगता है
और पश्चिम में डूबता है,,,,,,,, बहुत सुंदर रचना सर सच बात है अब गाँव में भी जीवन बदल रहा है ।
बहुत बहुत सुन्दर रचना.
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