घास के कुछ तिनके
औंधे मुँह पड़े हैं,
सारी दुनिया से बेख़बर,
अपने आप में मस्त.
कुछ तिनके ऐसे भी हैं,
जो सीधे खड़े हैं,
उन्हें डर है कि
अगर आसमान गिर पड़ा,
तो उनका क्या होगा.
हो सकता है,
उन्हें यह भी लगता हो
कि अगर आसमान गिर पड़ा,
तो शायद उसे
वे अपने सिर पर रोक लें.
सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाह !! लाजवाब सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब। सार्थक प्रस्तुति के लिए आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 15 फ़रवरी 2021 को चर्चामंच <a href="https://charchamanch.blogspot.com/ बसंत का स्वागत है (चर्चा अंक-3978) पर भी होगी।
वाह !!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति 🌹🙏🌹
ओंकार जी , घास सोचे न सोचें पर इन्सान हर भाव कितने तरीके से सोच लेता है । सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंअतिसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... अच्छी रचना है ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंबधाई
हो सकता है,
जवाब देंहटाएंउन्हें यह भी लगता हो
कि अगर आसमान गिर पड़ा,
तो शायद उसे
वे अपने सिर पर रोक लें.----- बहुत बहुत सुन्दर
बहुत ही बढ़िया है, बधाई हो आपको
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