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मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

५३७. कौए


पिता, तुम्हें याद है न,

कौए मुझे कितने नापसंद थे,

सख़्त नफ़रत थी मुझे 

उनकी काँव-काँव से,

उनका मुंडेर पर आकर बैठना 

बिल्कुल नहीं सुहाता था मुझे,

उड़ा देता था मैं उन्हें 

तरह-तरह के उपाय करके.


पर जब से तुम गए हो,

मुझे कौए अच्छे लगते हैं,

उनकी काँव-काँव अब 

कर्कश नहीं लगती मुझे.

मैं बुलाता हूँ उन्हें

कटोरी में पकवान रखकर, 

इंतज़ार करता हूँ उनका, 

पर वे आते ही नहीं,

दूर से देखते रहते हैं.


पिता, अगर उस झुण्ड में तुम हो,

तो चले आओ अपनी मुंडेर पर,

अब मैं पहले जैसा नहीं रहा,

अब मुझे कौओं से प्यार हो गया है.


16 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 24 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. ओह , पिता की स्मृति विचार भी बदल देती है ।भावपूर्ण

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२५-०२-२०२१) को 'असर अब गहरा होगा' (चर्चा अंक-३९८८) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  4. बहुत ही मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2050...क्योंकि वह अपनी प्रजा को खा जाता है... ) पर गुरुवार 25 फ़रवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. हृदय स्पर्शी! छोटे में भाव कहना आपका हूनर है।
    बहुत सुंदर सृजन।

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  7. वाह..भावपूर्ण अभिव्यक्ति..सुन्दर दृश्यावलोकन..

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  8. पिता, अगर उस झुण्ड में तुम हो,

    तो चले आओ अपनी मुंडेर पर,

    अब मैं पहले जैसा नहीं रहा,

    अब मुझे कौओं से प्यार हो गया है.

    हृदयस्पर्शी, बहुत ही सुंदर सृजन,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  9. पर जब से तुम गए हो,

    मुझे कौए अच्छे लगते हैं,

    उनकी काँव-काँव अब

    कर्कश नहीं लगती मुझे.

    मैं बुलाता हूँ उन्हें

    कटोरी में पकवान रखकर,

    इंतज़ार करता हूँ उनका,

    पर वे आते ही नहीं,

    दूर से देखते रहते हैं.



    पिता, अगर उस झुण्ड में तुम हो,

    तो चले आओ अपनी मुंडेर पर,

    अब मैं पहले जैसा नहीं रहा,

    अब मुझे कौओं से प्यार हो गया है.
    मार्मिक हृदस्पर्शि, भावपूर्ण नमन

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  10. आह!! कितने मार्मिक शब्द हैं!! आँखें नम कर गया- पिता को ये हृदय स्पर्शी उद्बोधन 🙏🙏

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  11. पिता, अगर उस झुण्ड में तुम हो,
    तो चले आओ अपनी मुंडेर पर,
    अब मैं पहले जैसा नहीं रहा,
    अब मुझे कौओं से प्यार हो गया
    👌👌👌🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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