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सोमवार, 16 नवंबर 2020

५०४. बेसुरा गीत



एक परिंदा कहीं से 

उड़ता हुआ आया,

गाने लगा कोई बेसुरा-सा गीत,

नाचने लगा कोई बेढंगा-सा नाच,

पर मुग्ध हो गई डाली,

झूमने लगी ख़ुशी से.


थोड़ी देर में उड़ जाएगा परिंदा,

बैठ जाएगा कहीं और जाकर,

पर झूमती रहेगी वह डाली,

जिस पर नृत्य किया था परिंदे ने 

और मन की गहराइयों से गाया था 

एक बेसुरा-सा गीत.


12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 17 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. थोड़ी देर में उड़ जाएगा परिंदा,

    बैठ जाएगा कहीं और जाकर,

    पर झूमती रहेगी वह डाली,

    जिस पर नृत्य किया था परिंदे ने

    और मन की गहराइयों से गाया था..सुंदर अभिव्यक्ति..।

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  3. गाने लगा कोई बेसुरा-सा गीत,
    नाचने लगा कोई बेढंगा-सा नाच,
    पर मुग्ध हो गई डाली,
    झूमने लगी ख़ुशी से..
    मन से किया प्रयास सुखकर ही होता है..अति सुन्दर ।

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  4. बहुत सुन्दर भाव. पलभर को भी कोई अपना बन जाए, तो भी मन उल्लासित होता है.

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