खिड़कियाँ बंद हैं,
दरवाज़े बंद हैं,
टहल रही है घर भर में
वही बासी हवा.
सुबह से शाम तक
वही दीवारें, वही छत,
मुश्किल है अब बंद रहना,
बाहर निकलने से बचना.
जी चाहता है,
खुली हवा में सांस लें,
निकल चलें बाहर,
पर ख़तरा है,
जो अब भी खड़ा है,
लक्ष्मण-रेखा है,
जो अब भी खिंची है.
जाने कब मिटेगी ये रेखा ...
जवाब देंहटाएंसच है बहुत देर हो रही है अब ...
जी चाहता है,
जवाब देंहटाएंखुली हवा में सांस लें,
निकल चलें बाहर,
पर ख़तरा है,
जो अब भी खड़ा है,
सही कहा आपने...खतरा है कि अभी भी वैसे का
वैसा ही है । सुन्दर सृजन ।
बहुत अच्छी सोच की कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकोरोना काल का ये अनुभव याद रहेगा। 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा लिखावट , बहुत ही सुंदर और सटीक तरह से जानकारी दी है आपने ,उम्मीद है आगे भी इसी तरह से बेहतरीन article मिलते रहेंगे
जवाब देंहटाएंBest Whatsapp status 2020 (आप सभी के लिए बेहतरीन शायरी और Whatsapp स्टेटस संग्रह) Janvi Pathak