घर में अकेले हो, तो आने दो गौरैया को अन्दर, बना लेने दो घोंसला, चिंचियाने दो उसे, हो जाने दो ज़रा-सी गन्दगी. बस थोड़ा सा सह लो, फिर देखना, अकेले नहीं रहोगे तुम, उदासी नहीं घेरेगी तुम्हें, लॉकडाउन तुम्हें अच्छा लगेगा.
आदरणीय ओंकार जी, आपने सरल, सहज शब्दों में युगीन सच्चाई को अभिव्यक्ति दी है। बस थोड़ा सा सह लो, फिर देखना, अकेले नहीं रहोगे तुम, उदासी नहीं घेरेगी तुम्हें, लॉकडाउन तुम्हें अच्छा लगेगा. --ब्रजेन्द्र नाथ
बहुत खूब .. सच कहा है ..
जवाब देंहटाएंअच्छी और सच्ची साथी बन सकती हैं ये ...
हमेशा की तरह गंभीर अर्थों को सहेजती आपको प्यारी कविता।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 5 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह !बेहतरीन अभिव्यक्ति आदरणीय सर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन .
जवाब देंहटाएंवाह!ओंकार जी ,बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंगौरैया का संगीत वाकई मन को भाता है।
जवाब देंहटाएंसादर
प्रकृति के लिए खोले गये दरवाजों से सदैव.सकारात्मकता का प्रवेश होता है।
जवाब देंहटाएंसुंद संदेश।
सदर।
आदरणीय ओंकार जी, आपने सरल, सहज शब्दों में युगीन सच्चाई को अभिव्यक्ति दी है।
जवाब देंहटाएंबस थोड़ा सा सह लो,
फिर देखना,
अकेले नहीं रहोगे तुम,
उदासी नहीं घेरेगी तुम्हें,
लॉकडाउन तुम्हें अच्छा लगेगा. --ब्रजेन्द्र नाथ
सच, सुबह सुबह पक्षी की चहचाहट से लगता है कि हम अकेले नहीं. बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में गहरी बात ,भावपूर्ण सृजन सर ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगता है.
जवाब देंहटाएंगौरैया का साथ रहना.
चहकना.चहचहाना.
साथ रह कर देखा है.
वाह !
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंbhut hi achi kavita hai sir
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह्! बहुत ही सुंदर।
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