अपने-अपने घरों मेंक़ैद हैं सब,
चलो, सोचते हैं, बाहर के बारे में,
उस कामवाली बाई के बारे में,
जिसकी पगार काटने को तैयार रहते हैं,
उन दिहाड़ी मज़दूरों के बारे में,
जो रोज़ कमाते,रोज़ खाते हैं,
उन डॉक्टरों,नर्सों के बारे में,
जो जान पर खेलकर जान बचाते हैं.
महसूसने के लिए,
कुछ करने के लिए,
सड़कों पर निकलना,
हाथ मिलाना,
गले लगना,
बिल्कुल ज़रूरी नहीं है.
चलो सोचते हैं...जरूर सोचना चाहिए हर किसी को....शायद संवेदना जग भी जाये...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक सृजन...।
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
सारे मिल कर सोचें एक को छोड़ कर :)
जवाब देंहटाएंचिन्तनपरक अभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंविचारणीय कविता।
जवाब देंहटाएंसच है बिलकुल भी जरूरी नहीं है ... पर संवेदना रखना जरूरी है ...
जवाब देंहटाएंयह सोच सबमें आ जाए बस. सही चिन्तन.
जवाब देंहटाएंसार्थक सृजन आदरणीय सर.
जवाब देंहटाएंसादर
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जवाब देंहटाएंजी ये सब जरूर सोचना चाहिए एक संवेदना से भरे इंसान को 🙏
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