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बुधवार, 28 अप्रैल 2021

५६०.मंजरी



बहुत मंजरी झरी 

आम के पेड़ों से इस बार, 

कोई आंधी-तूफ़ान नहीं था,

फिर भी,न जाने कैसे. 


कैरियाँ भी ख़ूब गिरीं,

छोटी-बड़ी, गिरती ही रहीं,

आम भी टपकते रहे

पकने से पहले. 


आम के पेड़ों का ऐसा हाल 

पहले तो कभी नहीं देखा था,

डराता है यह विध्वंस,

न जाने इन पेड़ों में मंजरी

कभी आएगी या नहीं. 

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 30 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. उफ्फ! सच्चाई को बयान करती कविता अंदर तक झकझोर गयी।

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  3. स्थिति तो भयावह ही है ओंकार जी पर आशा का साथ न छोड़ने में ही भलाई है।

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  4. आम टपकते रहे
    पकने से पहले ।
    ये सब भयावह है । जवान लोगों की मृत्यु इसी ओर इंगित कर रही है ।
    बिम्ब के माध्यम से आज के हालात का सरीक चित्रण ।

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  5. स्थिति की भयावहता को दर्शाती कविता.. सचमुच सब वीरान पड़ा है.... उम्मीद है जल्द ही इस पर हम लोग विजय प्राप्त करेंगे....

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  6. आदरणीय सर, बहुत ही मार्मिक और करुण कविता । कोरोना-काल में हर ओर रोग और असमय मृत्यु ने सभी का मन व्यथित और भयभीत कर दिया है पर यह काल समाप्त हो जाएगा। नई मंजरियाँ भी लगेंगी और अच्छे स्वास्थ पहल भी फलेंगे। हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।

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  7. दूसरे वेव में तो असमय मृत्यु ही हो रही है...यह जवानों को ही ज़्यादा असर कर रही है
    आज ही खबर आई वरिष्ठ पत्रकार रोहित सरदाना का निधन हो गया कोरोना की वजह से
    ४२ वर्ष के थे...दो छोटी बच्चियाँ हैं उनकी, उन्हें तो समझ भी नहीं आ रहा होगा कि उनके साथ क्या घटित हो गया
    ईश्वर उनके परिजनों को शक्ति दें इस विकट समय में

    ऐसे ही न जाने कितने लोगों का परिवार उजड़ गया इस आंधी में...पर देखिये ये बुरा वक़्त जल्दी टले

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  8. छोटी सी रचना गहरे घाव करती ज्यों नावक के तीर।
    अद्भुत!

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  9. बहुत गहरी रचना, अद्भुत
    आभार!

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