लो,गिरा दिए मैंने सारे पत्ते,
अब फूल ही फूल बचे हैं,
पर मेरी अनदेखी अभी जारी है
समझ में नहीं आता, क्या करूं
कि तुम्हारी नज़र मुझ पर पड़े.
चलो, मैंने फ़ैसला कर लिया है,
फूल भी गिरा दूंगा एक-एक करके,
बिल्कुल ठूँठ बन जाऊंगा,
तब तुम मेरी ओर देखना,
हैरानी,दया या हिक़ारत से,
पर मेरी अनदेखी मत करना.
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शनिवार १७ अप्रैल २०२१ को शाम ५ बजे साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
सच है अनदेखी बहुत मन को दुःख देती है । आपकी होली पर लिखी कविता भी याद आ गयी । उसमें भी कुछ अनदेखी की ही बात थी ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंमैं इस कविता में छुपे दर्द को महसूस कर रहा हूं ओंकार जी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भाव संजोए, लाजवाब सृजन। साधुवाद आदरणीय ओंकार जी।
जवाब देंहटाएंआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहा भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
जवाब देंहटाएंसुंदर और सटीक. मैंने सेमल ठूंठ बनते देखे हैं। कभी गिद्धों के आश्रयदाता थे, अब न वे पक्षी बचे न उनके घर :(
जवाब देंहटाएंचलो, मैंने फ़ैसला कर लिया है,
जवाब देंहटाएंफूल भी गिरा दूंगा एक-एक करके,
बिल्कुल ठूँठ बन जाऊंगा,
तब तुम मेरी ओर देखना,
हैरानी,दया या हिक़ारत से,
पर मेरी अनदेखी मत करना.
सशक्त बिबं-प्रधान भाव उद्वेलन
सुन्दर.......
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर,सार्थक,हृदय स्पर्शी सृजन ।
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