थोड़ी बहुत माँ दिख जाती है
बहन में, पत्नी में, हर औरत में,
यहाँ तक कि हर मर्द में भी
झलक मिल जाती है माँ की.
इतनी ख़ूबियाँ होती हैं माँ में
कि किसी भी इंसान में
माँ का कुछ-न-कुछ न मिलना
लगभग असंभव है,
वैसे ही जैसे एक ही इंसान में
पूरी की पूरी माँ का मिलना
लगभग असंभव है.
अगर आपको एक ही इंसान में
पूरी की पूरी माँ को देखना हो,
तो अपने घर जाइए
और अपनी माँ को देखिए.
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 16-04-2021) को
"वन में छटा बिखेरते, जैसे फूल शिरीष" (चर्चा अंक- 4038) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत सुन्दर और भावप्रवण।
जवाब देंहटाएंमाँ तो बस माँ ही होती है, अपना अंश बांटती हुई फिर भी पूर्ण !
जवाब देंहटाएंअगर आपको एक ही इंसान में
जवाब देंहटाएंपूरी की पूरी माँ को देखना हो,
तो अपने घर जाइए
और अपनी माँ को देखिए.
. बहुत सही बात ... सुन्दर रचना .
अगर आपको एक ही इंसान में
जवाब देंहटाएंपूरी की पूरी माँ को देखना हो,
तो अपने घर जाइए
और अपनी माँ को देखिए.
अक्षरशः सत्य...
अति सुंदर श्रेष्ठ रचना....🌹🙏🌹
बहुत सुंदर 👌♥️
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना. बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन सर।
जवाब देंहटाएंसादर
अगर आपको एक ही इंसान में
जवाब देंहटाएंपूरी की पूरी माँ को देखना हो,
तो अपने घर जाइए
और अपनी माँ को देखिए.
सही कहा आपने,माँ की झलक मिल सकती है माँ सिर्फ एक में ही मिलती है,भावपूर्ण सृजन,सादर नमन आपको
सुंदर भावपूर्ण सृजन।
जवाब देंहटाएंमाँ बस माँ ही हो सकती है, कहीं बस कुछ परछाइयां दिखती है, पर पूरी मूरत माँ तेरी तूझ में ही साकार होती है।
अप्रतिम।
आप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहा भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
जवाब देंहटाएंसुंदर, भावप्रवण रचना ।
जवाब देंहटाएं